मखाना बिहार की आर्थिक और सांस्कृतिक धरोहर है, बायोटेक्नोलॉजी और आईटी का लाभ उठाकर हम इसे एक वैश्विक ब्रांड में बदल सकते हैं, जिससे किसानों को बढ़ती मांग का लाभ मिल सके- प्रो.दिनेश चंद्र राय

ध्रुव कुमार सिंह, मुजफ्फरपुर, बिहार, २० मई
बिहार कृषि विज्ञान अकादमी, डॉ.राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय (आरपीसीएयू, पूसा), कृषि अर्थशास्त्र अनुसंधान संघ (नई दिल्ली) और अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (दक्षिण एशिया कार्यालय, नई दिल्ली) द्वारा मखाना प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन पर राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई, जिसमें मखाना को बिहार की कृषि अर्थव्यवस्था की आधारशिला और वैश्विक सुपरफूड के रूप में रेखांकित किया गया। बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय (बीआरएबीयू) के कुलपति प्रो.दिनेश चंद्र राय ने सेमिनार के एक सत्र ‘मखाना प्रसंस्करण और वैल्यू एडिशन’ की अध्यक्षता की। इस कार्यक्रम में ग्रामीण समृद्धि को बढ़ाने के लिए नवीन प्रसंस्करण तकनीकों और मूल्यवर्धित उत्पादों की खोज करने के लिए शोधकर्ताओं, किसानों, नीति निर्माताओं और उद्योग जगत के शीर्षस्थ लोगों को विमर्श के लिए आमंत्रित किया गया। संगोष्ठी में मखाना उत्पादन में बिहार के प्रभुत्व को रेखांकित किया गया, जो भारत की आपूर्ति का 90% है। गांधी मैदान के पास 876, प्रदर्शनी रोड पर आयोजित इस कार्यक्रम में फसल के सांस्कृतिक और आर्थिक महत्व पर प्रकाश डाला गया। खाद्य प्रौद्योगिकी के अग्रणी विशेषज्ञ कुलपति प्रो.दिनेश चन्द्र राय ने उन्नत प्रसंस्करण विधियों पर एक तकनीकी सत्र का नेतृत्व किया, जिसमें मखाना आधारित उत्पादों जैसे कि स्वास्थ्य बार, स्नैक्स और ग्लूटेन-मुक्त आटे का विकास शामिल है। पोषक तत्वों से भरपूर ऊर्जा बार और स्वास्थ्यवर्धक मुरुक्कू जैसे बाजरा आधारित नवाचारों पर अपने अपने शोध को उद्धृत करते हुए उन्होंने पारंपरिक खेती को आधुनिक तकनीक के साथ एकीकृत करने पर जोर दिया। प्रो.राय ने कहा, मखाना बिहार की आर्थिक और सांस्कृतिक धरोहर है। बायोटेक्नोलॉजी और आईटी का लाभ उठाकर, हम इसे एक वैश्विक ब्रांड में बदल सकते हैं, जिससे किसानों को बढ़ती मांग का लाभ मिल सके। कुलपति ने संगोष्ठी में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा मखाना बोर्ड की घोषणा का स्वागत करते हुए उसे इस पहल को बिहार की कृषि अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में बड़ा कदम बताया। उन्होंने कहा कि बोर्ड का उद्देश्य किसानों, विशेष रूप से मल्लाह समुदाय को उच्च उपज वाले बीज, उन्नत प्रसंस्करण बुनियादी ढाँचा और निर्यात बाजारों तक पहुँच प्रदान करना है। उन्होंने कहा की यह पहल वर्तमान उपज 1.7-1.9 टन प्रति हेक्टेयर और संभावित 3-3.5 टन के बीच के अंतर को पाट देगी, जिससे आय में वृद्धि होगी। मखाना की पौष्टिक विशेषता -प्रोटीन, फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर है, जो इसे भारत के पोषण मिशन और पोषक अनाज के लिए वैश्विक MIIRA पहल में सुपर फूड के रूप में स्थान देती है। प्रो.राय ने इसके निर्यात की संभावनाओं पर प्रकाश डालते हुए कहा की दुनिया भर में स्वास्थ्य के प्रति जागरूक उपभोक्ताओं के साथ, बिहार के किसान वैश्विक खाद्य व्यापार में अग्रणी हो सकते हैं, प्रभावकारी नीतियों और किसान-उत्पादक संगठनों के माध्यम से कृषक आजीविका को बढ़ावा दे सकते हैं। कार्यक्रम में अपर्याप्त प्रसंस्करण सुविधाओं और कम उत्पादकता जैसी चुनौतियों पर चर्चा की गई साथ ही बुनियादी ढांचे और प्रशिक्षण को मजबूत करने पर चर्चा की गई।