बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग व आईसीएचआर के संयुक्त तत्वावधान में “ऐतिहासिक परिपेक्ष्य में भारतीय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद” विषय पर राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित

ध्रुव कुमार सिंह, मुजफ्फरपुर, बिहार, १७ फ़रवरी
बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग व आईसीएचआर के संयुक्त तत्वावधान में “ऐतिहासिक परिपेक्ष्य में भारतीय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद” विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन हुआ. जिसके उद्घाटन सत्र के मुख्य वक्ता दिल्ली विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान के वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ.संगीत कुमार रागी ने पश्चिम के उस सोच को नकार दिया जिसके अनुसार भारत कभी एक राष्ट्र था ही नहीं। उन्होंने बताया कि किस तरह सयुंक्त राज्य अमेरिका ने अपने राष्ट्र निर्माण हेतु कैथोलिक धर्म का सहारा लिया और आज क्यों अपनी राष्ट्रीयता की रक्षा के लिए यूरोप के देश सारी सहिष्णुता को ताक पर रख दूसरे मुल्कों से आने वालों को प्रतिबंधित करने के लिए वीसा नियमों को कठोर बना रही है। उन्होंने कहा कि भारतीय राष्ट्रवाद का दर्शन स्वामी विवेकानंद, टैगोर और गाँधी के विचारों में झलकती है. वेदों और उपनिषदों की ऋचाओं में उन्हें पाया जा सकता है. मुख्य अतिथि सह महात्मा गाँधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी के कुलपति डॉ.संजय श्रीवास्तव ने ऐतिहासिक परिपेक्ष में भारतीय राष्ट्रवाद की प्राचीनता का उल्लेख किया। सेमिनार की अध्यक्षता करते हुए बीआरएबीयू के कुलपति डॉ.दिनेश चंद्र राय ने कहा कि भारत की संस्कृति वसुधैव कुटुंबकम की संस्कृति है। हमारी संस्कृति हमारे विचारों की वाहक है, जो पूरी दुनिया को अपने विचारों से आच्छादित करती है। हमें अपनी संस्कृति पर गर्व है। विभागाध्यक्ष डॉ.नीलम कुमारी ने आगत अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद भारत की संस्कृति, जीवन मूल्यों और सांस्कृतिक विरासत को अग्रसर करने की ओर राह दिखाता है। भारत की संस्कृति विश्व को जोड़ने का काम करती है। विषय प्रवेश डॉ. मधु सिंह ने किया तथा मंच संचालन डॉ.अमर बहादुर शुक्ला ने किया। सेमिनार में राजनीति विज्ञान विशेषज्ञ प्रो.जितेन्द्र नारायण, प्रो.विकास नारायण उपाध्याय, डॉ.दिलीप कुमार, डॉ.राजेश्वर प्रसाद सिंह सहित विश्वविद्यालय के पदाधिकारी गण एवं छात्र-छात्राएं उपस्थित थे। इस अवसर पर विभाग की ओर से एक स्मारिका का प्रकाशन किया गया जिसमें 90 शोधार्थियों के द्वारा प्रस्तुति हेतु दिए गए शोध-पत्रों को संग्रहित किया गया था।