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समाज सुधार अभियान के तहत बाल विवाह रोकथाम हेतु सतत प्रयास जारी, बाल विवाह मुक्त भारत के निर्माण हेतु डीडीसी ने दिलायी शपथ, हस्ताक्षर अभियान का हुआ शुभारंभ

बाल विवाह न केवल सामाजिक बुराई बल्कि कानूनन अपराध है- श्रेष्ठ अनुपम, डीडीसी

ध्रुव कुमार सिंह, मुजफ्फरपुर, बिहार, २७ नवम्बर

समाज सुधार अभियान के तहत बाल विवाह की रोकथाम को लेकर मुजफ्फरपुर समाहरणालय सभागार में जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता उप-विकास आयुक्त श्रेष्ठ अनुपम ने की। कार्यक्रम में अधिकारियों, कर्मियों, समाजसेवियों तथा विभिन्न संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। डीडीसी ने उपस्थित जनों से बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराई की रोकथाम करने का प्रयास करने की शपथ दिलाई। कार्यक्रम की शुरुआत बाल विवाह की वर्तमान स्थिति, इसके दुष्परिणाम और सरकार द्वारा चलाए जा रहे अभियानों की जानकारी देने से हुई। डीडीसी ने कहा कि बाल विवाह भारतीय समाज की सबसे हानिकारक कुप्रथाओं में से एक है, जो बच्चों— विशेषकर बेटियों— के जीवन, शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा पर गहरा नकारात्मक असर डालता है। उन्होंने समाज से अपील की कि वे अपने स्तर पर इस बुराई को रोकने के लिए समाज के हर वर्ग को जागरूक करें। कार्यक्रम के दौरान उप-विकास आयुक्त ने उपस्थित लोगों को बाल विवाह के खिलाफ शपथ दिलाई। शपथ में कहा गया कि बाल विवाह एक सामाजिक बुराई और पूरी तरह गैर -कानूनी कृत्य है। यह बालिकाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा और भविष्य को बर्बाद करता है। किसी भी परिवार, पड़ोस या समुदाय में बाल विवाह होने नहीं देंगे। यदि ऐसा कोई प्रयास दिखे तो तुरंत पंचायत, प्रशासन या संबंधित सरकारी विभाग को सूचना देंगे। बच्चों की शिक्षा, सुरक्षा, और विकास के लिए समाज में सकारात्मक माहौल बनाएंगे। डीडीसी ने कहा कि बाल विवाह रोकना केवल कानून का पालन करना नहीं है, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों की रक्षा करना है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि लड़की की शादी 18 वर्ष से पहले और लड़के की शादी 21 वर्ष से पहले कराना कानूनन अपराध है। उन्होंने समाज से अपील किया कि बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने, आत्मनिर्भर बनने और जीवन के निर्णय लेने योग्य बनाने के लिए समय दिया जाए। समय से पहले विवाह होने पर न तो लड़की और न ही लड़का मानसिक, सामाजिक या आर्थिक रूप से परिपक्व हो पाते हैं। डीडीसी ने अपने संबोधन में बताया कि राज्य सरकार ने समाज सुधार अभियान के तहत बाल विवाह उन्मूलन और दहेज प्रथा जैसे सामाजिक कुरीतियों को मिटाने के लिए कई प्रभावी उपाय किए हैं। गाँवों से लेकर शहरों तक लगातार जागरूकता अभियान, नुक्कड़ नाटक, रैलियाँ, सभाएँ और जन-संवाद कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि सरकारी पहल और सामुदायिक सहभागिता से लोगों की सोच में तेजी से बदलाव देखने को मिल रहा है। ग्रामीण इलाकों में भी अब लोग बाल विवाह के दुष्प्रभावों को समझने लगे हैं और लड़कियों की शिक्षा को महत्व दे रहे हैं। डीडीसी ने कहा कि समाज की सोच बदलना ही असली सफलता है, कानून तभी प्रभावी होता है जब जनता उसके महत्व को समझे। राज्य सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कई हेल्पलाइन नंबर भी उपलब्ध कराए हैं—महिला सुरक्षा हेल्पलाइन : 181, वन स्टॉप सेंटर (सदर अस्पताल) : 9771468021, आपातकालीन सेवा : 112 ये सेवाएँ बाल विवाह, घरेलू हिंसा, उत्पीड़न या किसी भी तरह की सुरक्षा संबंधी समस्या में तुरंत सहायता प्रदान करती हैं। डीडीसी श्रेष्ठ अनुपम ने अपने विस्तृत संबोधन में बताया कि बाल विवाह केवल एक परिवार की समस्या नहीं, बल्कि पूरे समाज और आने वाली पीढ़ियों को प्रभावित करने वाली कुप्रथा है। उन्होंने इसके दुष्प्रभाव के बारे में कहा की कम उम्र में गर्भधारण लड़कियों के लिए बेहद खतरनाक है। इससे कुपोषण, एनीमिया, प्रसव जटिलताओं और मातृ मृत्यु दर का जोखिम बढ़ जाता है। मानसिक रूप से भी कम उम्र की लड़कियाँ वैवाहिक जिम्मेदारियों के दबाव को सहन नहीं कर पातीं, जिससे तनाव, अवसाद और घरेलू हिंसा की संभावना बढ़ती है। बाल विवाह लड़कियों की पढ़ाई का सबसे बड़ा अवरोध है। शादी के बाद अधिकांश लड़कियाँ शिक्षा बीच में छोड़ देती हैं, जिससे वे रोजगार और आत्मनिर्भरता से दूर हो जाती हैं। इसका सीधा असर सामाजिक विकास पर पड़ता है। कम उम्र की लड़कियाँ सामाजिक रूप से इतनी मजबूत नहीं होतीं कि वे घरेलू हिंसा या मानसिक उत्पीड़न का मुकाबला कर सकें। नाबालिग विवाह उन्हें शोषण और प्रताड़ना के अधिक जोखिम में डाल देता है। अपरिपक्व उम्र में विवाह और कम उम्र में मातृत्व की स्थिति परिवार पर आर्थिक बोझ बढ़ाती है। इससे परिवार धीरे-धीरे गरीबी के चक्र में फँस जाता है। बाल विवाह महिलाओं को शिक्षा, सम्मान और अवसरों से दूर करके समाज में असमानता को बढ़ावा देता है। डीडीसी ने कहा कि बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई सिर्फ सरकार की नहीं, बल्कि पूरी समाज की जिम्मेदारी है। उन्होंने अधिकारियों से गाँव-गाँव जाकर जागरूकता फैलाने और प्रत्येक नागरिक से इस अभियान का हिस्सा बनने की अपील की।

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