कृषि अवशेष प्रबंधन से लेकर वायु-जल प्रदूषण तक: जिलाधिकारी का कड़ा एक्शन, मुजफ्फरपुर में शुरू हुआ व्यापक अभियान, पराली जलाने पर सख्त कार्रवाई, पकड़े जाने पर सरकारी लाभ से होंगे वंचित
नदी, सड़क, उद्योग और खनन प्रदूषण पर बड़ी पहल: मुजफ्फरपुर को स्वच्छ, सुंदर,सुरक्षित बनाने का प्रभावी पहल, डीएम ने अधिकारियों के साथ की बैठक

ध्रुव कुमार सिंह, मुजफ्फरपुर, बिहार, ०८ दिसम्बर
मुजफ्फरपुर जिले में फसल कटाई के बाद खेतों में बचे कृषि अवशेषों को जलाने की प्रवृत्ति अब भी कई जगहों पर जारी है, जिससे पर्यावरण, जनस्वास्थ्य और मिट्टी की उर्वरता पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। इसी को ध्यान में रखते हुए जिलाधिकारी सुब्रत कुमार सेन ने विस्तृत समीक्षा बैठक की और कृषि अवशेष प्रबंधन, वायु प्रदूषण नियंत्रण तथा जल प्रदूषण रोकने हेतु कई कड़े और प्रभावी कदम उठाने का निर्देश दिया। जिलाधिकारी ने कहा कि पराली जलाना न केवल पर्यावरण को हानि पहुंचाता है, बल्कि किसानों के स्वास्थ्य , उत्पादन एवं उर्वरता पर दीर्घकालिक प्रतिकूल प्रभाव डालता है। उन्होंने पराली जलाने की घटनाओं पर कड़ी निगरानी और दोषी पाए जाने पर कठोर कार्रवाई के निर्देश दिए। खेतों में फसल अवशेष के रूप में पुआल, ठूंठ और अन्य कृषि अवशेषों को जलाने से मिट्टी की प्राकृतिक संरचना नष्ट होती है। मिट्टी में मौजूद सूक्ष्म जीवाणु मर जाते हैं, नमी घट जाती है और पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। इससे अगली फसल के लिए अधिक उर्वरक और सिंचाई की जरूरत पड़ती है, जिससे किसानों को खेती में लागत बढ़ जाती है और उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ता है। इसके अतिरिक्त, पराली जलाने से निकला धुआं वायुमंडल में घुलकर प्रदूषण बढ़ाता है, जिससे सांस की बीमारियाँ, एलर्जी, आंखों में जलन और हृदय रोग जैसी समस्याएं बढ़ती हैं। धुएं की वजह से दृश्यता कम होने से सड़क दुर्घटनाओं में भी वृद्धि की आशंका रहती है। जिलाधिकारी ने जिला कृषि पदाधिकारी को किसानों को आधुनिक कृषि यंत्रों के उपयोग के लिए प्रेरित करने को कहा, ताकि अवशेषों को बिना जलाए खेत में ही मिलाया जा सके। इससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ेगी और अगली फसल के लिए प्राकृतिक खाद तैयार होगी। प्राकृतिक खेती तथा जैविक विधियों को भी बढ़ावा देने को कहा गया। कृषि अवशेषों का उपयोग कम्पोस्ट, मल्चिंग और पशुओं के चारे के रूप में करने से न केवल अवशेषों का उपयोग संभव होगा, बल्कि गांवों में रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे। जिलाधिकारी ने किसान सलाहकारों, कृषि समन्वयकों और पंचायत प्रतिनिधियों के माध्यम से पराली जलाने से जुड़े नुकसान और वैकल्पिक उपायों के संबंध में गांव-गांव में व्यापक जागरूकता अभियान चलाने का निर्देश दिया। इसके लिए कृषि विभाग द्वारा किसान चौपाल, प्रशिक्षण शिविर, जनसंवाद और प्रदर्शनियों का आयोजन किया जाय। इसमें किसानों को अवगत कराया जाएगा कि फसल अवशेष जलाना जमीन, स्वास्थ्य और उत्पादन—तीनों के लिए हानिकारक है। सरकार द्वारा कृषि अवशेष प्रबंधन हेतु कई प्रोत्साहन योजनाएँ लागू हैं, जिनमें आधुनिक कृषि यंत्रों पर अनुदान, किसान समूहों को वित्तीय सहायता और पंचायत स्तर पर अवशेष संग्रह केंद्र की स्थापना प्रमुख हैं। जिलाधिकारी ने स्पष्ट किया कि यदि कोई किसान पराली जलाते हुए पकड़ा जाएगा तो उसे सरकारी योजनाओं के लाभ से से वंचित कर दिया जाएगा। साथ ही कानूनी कार्रवाई के तहत प्राथमिकी दर्ज की जाएगी। नगर निगम को शहर में धूल और सड़क प्रदूषण नियंत्रित करने के लिए नियमित मैकेनिकल स्वीपिंग और जल छिड़काव करने का निर्देश दिया गया। निर्माण स्थलों पर धूल नियंत्रण, सामग्री का ढका परिवहन, कचरा जलाने पर पूर्ण प्रतिबंध और वेस्ट सेग्रीगेशन को सख्ती से लागू करने को कहा गया। एंटी-लार्वा, फॉगिंग और सैनिटेशन कार्य भी नियमित रूप से किए जाएंगे। प्रमुख चौराहों, पार्कों और सरकारी कार्यालय परिसर में वृक्षारोपण कर हरित क्षेत्र बढ़ाया जाएगा। नगर निगम द्वारा बैरिया, चांदनी चौक, जीरो माइल और अखाड़ाघाट इलाके का सौंदर्यीकरण भी किया जाएगा, जिससे शहर स्वच्छ, सुंदर और सुरक्षित बने। खनन विभाग को रेत, गिट्टी और मिट्टी के वैध उत्खनन की निगरानी बढ़ाने और अवैध खनन पर तत्काल कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए। ओवरलोड वाहनों पर रोक लगाने से सड़क खराब होने और हवा में धूल उड़ने की समस्या कम होगी। खनन क्षेत्रों में पानी का छिड़काव करने का निर्देश दिया गया। परिवहन विभाग और नगर निगम को बिना PUC प्रमाणपत्र वाले वाहनों पर कार्रवाई करने को कहा गया। पुराने, धुआं उत्सर्जन करने वाले वाहनों की फिटनेस जांच करने का निर्देश दिया गया। शहर में ट्रैफिक जाम कम करने के लिए जोनिंग, रूट निर्धारण, वन-वे सिस्टम और पार्किंग व्यवस्था को बेहतर बनाया जाएगा। वेंडिंग जोन निर्धारित कर शहर को जाम मुक्त करने तथा उसे स्वच्छ सुंदर एवं सुरक्षित बनाने का अभियान तेज कर दिया गया है। नारायणपुर अनंत में स्थित रेलवे यार्ड और बियाडा के टेक्सटाइल हब से आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों एवं जनसमुदाय पर प्रदूषण का असर देखा जा रहा है। इस क्षेत्र में मानव बसावट होने के कारण धूल, धुआं और रासायनिक कणों का स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जिलाधिकारी ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए रेलवे डीआरएम को यार्ड को अन्यत्र स्थानांतरित करने हेतु पत्र भेजने का निर्देश दिया, ताकि स्थानीय नागरिकों को प्रदूषण से राहत मिल सके। बूढ़ी गंडक नदी में प्रदूषण दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। विशेष रूप से अखाड़ाघाट पुल से लोग पूजा सामग्री, कूड़ा और अन्य वस्तुएं नदी में फेंक देते हैं, जिससे जल की गुणवत्ता और नदी की जैव विविधता पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन एवं NGT के निर्देशों के तहत जिलाधिकारी ने पथ प्रमंडल-1 के कार्यपालक अभियंता को निर्देश दिया है कि अखाड़ाघाट पुल के दोनों ओर उचित ऊंचाई की सुरक्षात्मक घेराबंदी की जाए। इससे पुल पर खड़े होकर नदी में कचरा फेंकने की प्रवृत्ति पर रोक लगेगी और जल प्रदूषण कम होगा। जिलाधिकारी ने बैठक में कृषि अवशेष प्रबंधन से लेकर सड़क, वाहन, उद्योग, खनन और नदी प्रदूषण तक, सभी क्षेत्रों में कड़े कदम उठाने का महत्वपूर्ण निर्देश दिया। उन्होंने संबंधित विभागों को समन्वित रूप से काम करने और जनसहभागिता सुनिश्चित करने का निर्देश दिया, ताकि मुजफ्फरपुर को स्वच्छ, स्वस्थ और प्रदूषण-मुक्त बनाया जा सके।





