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डॉ.अंबेडकर एक सम्मानित नेता, विचारक और सुधारक थे, जिन्होंने अपना पूरा जीवन समानता और जाति-आधारित भेदभाव को मिटाने के लिए समर्पित कर दिया- प्रो.दिनेश चंद्र राय, कुलपति, बीआरएबीयू

डॉ.अंबेडकर एक महान और दूरदर्शी अर्थशास्त्री थे : जयंतकांत, पुलिस उप-महानिरीक्षक, तिरहुत प्रक्षेत्र

ध्रुव कुमार सिंह, मुजफ्फरपुर, बिहार, ०६ दिसम्बर

भारतीय संविधान के निर्माता, बोधिसत्व, भारत रत्न बाबासाहेब डॉ.भीमराव अंबेडकर के परिनिर्वाण दिवस पर विश्वविद्यालय सीनेट हॉल में आयोजित स्मृति-सह-श्रद्धांजलि सभा के अवसर पर “वर्तमान परिप्रेक्ष्य में डॉ. भीमराव अंबेडकर की प्रासंगिकता” विषय पर आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो.दिनेश चंद्र राय ने कहा कि हर साल 6 दिसंबर का दिन भारत रत्न डॉ.भीमराव रामजी अंबेडकर की पुण्यतिथि को महापरिनिर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है, जिन्हें बाबासाहेब अंबेडकर के नाम से जाना जाता है। अंबेडकर भारतीय संविधान के मुख्य निर्माता (आर्किटेक्ट) थे। डॉ.अंबेडकर एक सम्मानित नेता, विचारक और सुधारक थे, जिन्होंने अपना पूरा जीवन समानता के लिए वकालत और जाति-आधारित भेदभाव को मिटाने के लिए समर्पित कर दिया। बाबा साहब का जीवन संघर्ष, परिश्रम और समानता के सिद्धांतों का प्रतीक रहा है। उन्होंने जिस समतामूलक राष्ट्र की परिकल्पना की, उसे साकार करने का दायित्व हम सबों पर है। बाबा साहब का सपना था कि शिक्षा समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे। शिक्षा ही सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण की कुंजी है। मुख्य अतिथि सह पुलिस उप-महानिरीक्षक, तिरहुत प्रक्षेत्र जयंतकांत ने कहा कि डॉ.अंबेडकर एक महान और दूरदर्शी अर्थशास्त्री थे। भारत के सामाजिक आर्थिक विकास के लिए उन्होंने कृषि, मुद्रा और श्रम पर मौलिक विचार दिए। उनका मानना था कि आर्थिक न्याय के बिना सामाजिक न्याय अधूरा है। आज जब भारत समावेशी और डिजिटल अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रहा है, अंबेडकर की आर्थिक सोच अत्यंत प्रासंगिक हो गई है। डॉ.अंबेडकर ने श्रम प्रबंधन पर विचार करते हुए कहा था श्रमिकों के अधिकार की सुरक्षा, गरिमा और कल्याण को प्राथमिकता देने की जरूरत है। उनका मानना था कि प्रबंधन और श्रमिकों के बीच सहयोग से ही बेहतर औद्योगिक समाज बन सकता है। मुख्य वक्ता पूर्व प्राचार्य व दलित चिंतक डॉ.हरिनारायण ठाकुर ने कहा कि डॉ.अंबेडकर की चेतना वैज्ञानिक थी, जो तर्क, प्रमाण, शिक्षा और प्रगतिशील सोच पर आधारित थी। उन्होंने अंधविश्वास और रूढ़िवादिता को त्यागकर, समानता और मानवाधिकारों के लिए वैज्ञानिक सोच और पद्धति का उपयोग किया। निश्चित रूप से अंबेडकर की वैज्ञानिक चेतना प्रगतिशील भारत के निर्माण का एक समग्र दर्शन था जो आज भी प्रासंगिक है। संगोष्ठी में विषय प्रवेश कराते हुए डॉ.सुशांत कुमार ने कहा कि डॉ.आंबेडकर सिर्फ एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक दर्शन है, जो एक ऐसे भारत की परिकल्पना करते हैं, जहां हर नागरिक को सम्मान, समानता और अवसर मिले। संगोष्ठी में प्रॉक्टर बी.एस राय, कुलसचिव डॉ.समीर कुमार शर्मा, पूर्व पुलिस उप-महानिरीक्षक डॉ.सुकन पासवान “प्रज्ञा चक्षु”, प्राचार्य डॉ.अमिता शर्मा, प्राचार्य डॉ.शशि भूषण कुमार, सिंडिकेट सदस्य डॉ.रमेश प्रसाद गुप्ता, सीनेट सदस्य डॉ.संजय कुमार सुमन, डॉ.रजनीश कुमार गुप्ता, डॉ.विजय कुमार, डॉ.वीरेंद्र चौधरी, डॉ.अनीता, डॉ.ललन झा, डॉ.मनोज कुमार, डॉ.नीलम कुमारी, डॉ.विपिन कुमार राय, डॉ.रेनू कुमारी, डॉ.कौशल चौधरी, डॉ.प्रमोद कुमार, डॉ.ललित किशोर, डॉ.सतीश कुमार, डॉ.अमर बहादुर शुक्ला, डॉ.अनिल कुमार, उमा पासवान, गौरव कुमार सहित विश्वविद्यालय कर्मचारी व छात्र-छात्राएं उपस्थित थे। कार्यक्रम में मंच संचालन पूर्व डिप्टी रजिस्ट्रार उमाशंकर दास और धन्यवाद ज्ञापन कार्यक्रम संयोजक सह उप-कुलसचिव डॉ.विनोद बैठा ने किया।

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