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रामदयालु सिंह महाविद्यालय में स्नातकोत्तर दर्शनशास्त्र विभाग एवं आईक्युएसी के संयुक्त तत्वावधान में विश्व दर्शन दिवस पर “भारतीय दर्शन में नीतिशास्त्र -ऋत से राजनीति तक” विषयक व्याख्यान आयोजित

ध्रुव कुमार सिंह, मुजफ्फरपुर, बिहार

रामदयालु सिंह महाविद्यालय में स्नातकोत्तर दर्शनशास्त्र विभाग एवं आईक्युएसी के संयुक्त तत्वावधान में विश्व दर्शन दिवस के उपलक्ष्य में एक दिवसीय व्याख्यान का आयोजन किया गया। व्याख्यान का मुख्य विषय “भारतीय दर्शन में नीतिशास्त्र -ऋत से राजनीति तक” था। कार्यक्रम की शुरुआत भारतीय परंपरा अनुसार दीप प्रज्वलन कर की गई। उसके उपरांत महविद्यालय की ओर से मुख्य वक्ता प्रो.निखिल रंजन प्रकाश तथा विशिष्ट वक्ता डॉ.रेणूबाला का सम्मान प्राचार्य द्वारा अंग वस्त्र, स्मृति चिन्ह तथा तुलसी के पौधे से किया गया। दर्शनशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ.अनुराधा पाठक द्वारा संपादित पुस्तक “आधुनिक भारतीय दार्शनिक -भाग एक का विमोचन किया गया। पुस्तक परिचय आईक्यूएसी कोऑर्डिनेटर डॉ.रजनीकांत ने और दर्शनशास्त्र विभाग अध्यक्ष स्वागत भाषण से सबका अभिनंदन किया तथा विषय प्रवेश किया।  विशिष्ट वक्ता के रूप में आरबीबीएम कॉलेज के दर्शनशास्त्र विभाग अध्यक्ष डॉ.रेनू बाला ने ऋत से राजनीति तक विषय पर अपने व्याख्यान के संबंध में वेदों के लोक कल्याणकारी विषय पर प्रकाश डाला तथा कहा की नीतिशास्त्र का आधार दायित्व बोध ही है। उन्होंने कहा कि ‘आत्मनो मोक्षा जगत् हिताय च’ के सूत्र को आत्मसात करने की आवश्यकता है। भारतीय नीति शास्त्र सन्यास और संसार में पूर्ण सामंजस्य की बात करता है। राजा को धर्म,अर्थ,काम के सामंजस्य से विजयी होना चाहिए तथा अपनी प्रजा पर शासन करना चाहिए।ऋत आधारित राजनीति होनी चाहिए दंड का उपयोग सुधारवादी होना चाहिए। मुख्य वक्ता के रूप में बीआरए बिहार विश्वविद्यालय  के विभागाध्यक्ष प्रो.निखिल रंजन प्रकाश ने ऋत के संबंध में अपना व्याख्यान देते हुए कहा कि ऋत अदृश्य है लेकिन हमारे समक्ष धर्म रूप में है। उन्होंने आगे कहा कि भारतीय सांस्कृतिक परंपरा बांटकर देखने की नहीं है, यह तो समरूप भाव से सबको साथ लेकर आगे बढ़ती है। भारत में जिस प्रकार सब कुछ नीति पर आधारित है इस प्रकार ऋत और राजनीति भी है।अस्तित्व का आधार ऋत है जो दिखता नहीं है। वही सत्य है।जिस प्रकार धर्मयुद्ध में कुरुक्षेत्र के बीच अर्जुन को विराट रूप में श्री कृष्ण ने प्रवचन दिया वह भी ऋत ही था। वर्तमान परिदृश्य में राजनीति ऋत त्याग कर अधोगामी हो गई है जबकि भारतीय परंपरा में सर्वदा से राजनीति नीतिशास्त्र और कर्तव्य केंद्रित रही है। विशिष्ट वक्ता और मुख्य वक्ता के व्याख्यान के बाद छात्र-छात्राओं द्वारा प्रश्न किये गये जिसका विद्वान वक्ताओं द्वारा उत्तर दिया गया। प्रश्नोत्तरी के बाद अध्यक्षीय भाषण देते हुए महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. शशि भुषण कुमार ने आगत विद्वानों की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए कहा कि धन्य है हमारा भारतीय समाज जिसने ऐसे ऋषि मनिषियों को जन्म दिया जिनके बताएं मार्ग पर हम सभी निरंतर आगे बढ़ सकते हैं‌ अपना भौतिक विकास करने के साथ साथ आध्यात्मिक विकास भी कर सकते हैं। प्राचार्य ने कहा कि राजनीति को नीति के आलोक में देखना निश्चित रूप से समाज का पथ प्रदर्शक करने वाला होगा। महाविद्यालय के  डॉ.रजनीकांत जी ने धन्यवाद ज्ञापित किया। व्याख्यान कार्यक्रम का संचालन महाविद्यालय के ही दर्शनशास्त्र की आचार्या डॉ स्नेहलता ने किया। इस अवसर पर प्रो. अनिता सिंह, डॉ.रमेश कुमार, प्रो.संजय सुमन, डॉ.आएशा, डॉ.कृतिका, डॉ.मीनू, डॉ.ललित किशोर, डॉ.सौरभ राज, डॉ.राजीव कुमार, डॉ.भगवान, डॉ.आलोक, डॉ.हसन रजा सहित बड़ी संख्या में शिक्षणेत्तर कर्मचारियों एवं छात्र-छात्राओं उपस्थित थें।

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