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मालवीय मिशन शिक्षक प्रशिक्षण केंद्र, बाबासाहेब भीमराव अंबेदकर बिहार विश्वविद्यालय और विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग द्वारा रिफ्रेशर पाठ्यक्रम उद्घाटित

महान साहित्य का सृजन अपनी भाषा में ही संभव : प्रो.दिनेशचंद्र राय, कुलपति

ध्रुव कुमार सिंह, मुजफ्फरपुर, बिहार, ११ सितम्बर

मालवीय मिशन शिक्षक प्रशिक्षण केंद्र, बाबासाहेब भीमराव अंबेदकर बिहार विश्वविद्यालय और विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग द्वारा आयोजित हिन्दी विषय में रिफ्रेशर पाठ्यक्रम के उदघाटन कार्यक्रम में बिहार लोक सेवा आयोग, पटना के सदस्य और साहित्यकार प्रो.अरुण कुमार भगत मुख्य अतिथि  के रूप में उपस्थित रहे, जबकि हिन्दी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार और चिंतक नंदकिशोर आचार्य मुख्य वक्ता के रूप में निमंत्रित थे।उदघाटन कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलपति प्रो.दिनेशचंद्र राय ने की। सर्वप्रथम दीप प्रज्वलन कर सभी मंचस्थ अतिथियों ने कार्यक्रम  की औपचारिक शुरुआत की। स्वागत  व्यक्तव्य करते हुए प्रशिक्षण केंद्र के निदेशक प्रो.विनय शंकर राय ने मुख्य अतिथि, अति विशेष अतिथि नंदकिशोर आचार्य, कुलसचिव प्रो.समीर कुमार शर्मा सहित सभी मंचस्थ और सभागार में उपस्थित प्रतिभागियों का स्वागत और अभिनंदन किया। इस अवसर पर विषयों और उप-विषयों की स्पष्ट संकल्पना को रखते हुए पाठ्यक्रम की पूरी योजना की जानकारी प्रो.सुधा कुमारी ने दी, जबकि रिफ्रेशर पाठ्यक्रम के समन्वयक और विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग के वरिष्ठ प्राध्यापक प्रो.प्रमोद कुमार ने “भारतीय साहित्य की संकल्पना ” विषय का विषय प्रवेश करते हुए इस विषय के चयन के आधार और प्रासंगिकता पर सूक्ष्मता से चर्चा की। मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए प्रो.भगत ने कहा कि भारत में साहित्य की संकल्पना काफी प्राचीन है। वैदिक, पौराणिक, औपनिषदिक साहित्य से लेकर आज तक का अद्यतन साहित्य भारतीयता के विचारों से प्रेरित है। अध्यक्षीय भाषण देते हुए कुलपति प्रो. दिनेशचंद्र राय ने कहा कि  यह बहुत ही सुखद है कि हिन्दी में रिफ्रेशर कोर्स प्रत्यक्ष रूप से हो रहा है और वह भी भारतीय साहित्य पर केंद्रित होकर। उन्होंने कहा कि साहित्य में मनुष्य का जीवन ही प्रतिबिंबित होता है, इसलिए यदि जीवन में भारतीयता स्थापित होती है, तो साहित्य में भी भारतीयता स्थापित होनी ही चाहिए।उन्होंने गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर से लेकर गोस्वामी तुलसीदास और रामधारी सिंह दिनकर तक का उल्लेख किया और कहा कि हमे गर्व है कि भारतीय साहित्य  विश्व में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस अवसर पर कुलसचिव प्रो.समीर कुमार शर्मा ने कहा कि भारतीय साहित्य की बात भारतीय भाषाओं के साहित्य में ही की जा सकती है। उनका कहना था कि मातृभाषा में ही शुद्ध सृजन की संभावना रहती है। इसलिए जब भी मुझे शुद्ध कविता की तलाश करनी होती है तो मैं दिनकर के शरण में जाता हूं। बीज भाषण देते हुए पूरे विस्तार और गंभीरता के साथ श्री आचार्य ने भारतीय साहित्य की संकल्पना को स्पष्ट किया वैदिक ऋचाओं से लेकर लोक साहित्य तक में मौजूद भारतीयता के तत्वों को रेखांकित करते हुए बताया कि वास्तव में भारतीय साहित्य की पहचान उसमें मौजूद संवेदनात्मक रीत से है। सही तरीके से भारतीय साहित्य वही है जिसमें संवेदनाएं अपने उत्कर्ष पर असीम तक पहुंच जाती हैं। इस अर्थ में भारत का शास्त्रीय और लोक साहित्य दोनों काफी समृद्ध है। इस अवसर पर कार्यक्रम का संचालन करते हुए उप-निदेशक डॉ.राजेश्वर कुमार ने कहा कि साहित्य की कई ऐसी प्रवृत्तियां रही हैं जो भारत की सभी भाषाओं के साहित्य में समान रूप से पाई जाती हैं। इस अर्थ में भारत का भक्ति आंदोलन,पुनर्जागरण और राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन ने भारतीय साहित्य की संकल्पना को एक ठोस आधार प्रदान किया है। मौके पर हिन्दी विभाग के प्रो.सतीश कुमार राय, प्रो.जयकांत सिंह, प्रो.आशा कुमारी, डॉ.सुशांत कुमार, डॉ.राकेश रंजन, डॉ. रमेश गुप्ता, डॉ.अमर बहादुर शुक्ल सहित अनेक शोधार्थी और प्राध्यापक उपस्थित रहे।

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