सांस्कृतिक संवेदनशीलता समावेशिता को बढ़ावा देता है: डॉ.मार्टा मिलानी, यूनिवर्सिटी आफ वेरोना

ध्रुव कुमार सिंह, मुजफ्फरपुर, बिहार
बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग द्वारा तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेंस के दूसरे दिन मुख्य वक्ता के रूप में यूनिवर्सिटी आफ वेरोना, इटली की प्रोफेसर डॉ.मार्टा मिलानी ने ऑनलाइन मोड में कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा कि सांस्कृतिक संवेदनशीलता समावेशिता को बढ़ावा देने का काम करता है। सांस्कृतिक संवेदनशीलता का परिणाम दूसरों की संस्कृतियों और विविध लोगों के प्रति सम्मान, समझ और सकारात्मक अंत: क्रियाओं के रूप में होता है। इससे समावेशी और सामंजस्य पूर्ण वातावरण बनता है। प्रोफेशनल डाइवर्सिटी की बाधाएं और चुनौतियों पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि विविध कार्यबल न केवल नैतिक रूप से सही है, बल्कि यह उत्पादकता बढ़ाने, नवाचार को बढ़ावा देने और कर्मचारियों में जुड़ाव की भावना पैदा करने में सहायक होता है। मनोविज्ञान के संदर्भ में उन्होंने भावना और पालन पोषण पर भी प्रकाश डाला। डाउन यूनिवर्सिटी असम के क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ.आशुतोष श्रीवास्तव ने सांस्कृतिक विविधता और मनोवैज्ञानिक पहलू की चर्चा करते हुए कहा कि वस्तुत: सांस्कृतिक विविधता पहचानों, प्रथाओं और अभिव्यक्तियों की बहुलता को दर्शाता है। इसमें विभिन्न भाषाओं, धर्मो, परंपराओं, रीति-रिवाजों, कलाओं और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि वाले लोग शामिल होते हैं। यह समावेशिता और रचनात्मकता को बढ़ावा देती है। विशिष्ट अतिथि वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय आरा के कुलानुशासक व मनोवैज्ञानिक डॉ.लाल बाबू सिंह ने कहा कि मनुष्य का व्यवहार उसकी सामाजिक- सांस्कृतिक जड़ों से निर्मित होता है। व्यक्तिवाद और सामूहिकता, तनाव और उपचार आदि संस्कृति के संदर्भ से ही आकार लेती है। उन्होंने मनोवैज्ञानिक अनुसंधान में विविधता और समावेशन को बढ़ावा देने की जरूरत पर प्रकाश डाला। अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेंस के संयोजक व मनोविज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ.रजनीश कुमार गुप्ता ने अकादमिक और तकनीकी सत्र के चेयरपर्सन व उप- चेयरपर्सन को अंग वस्त्रम देकर स्वागत किया। शोध पत्र पढ़ने वाले सभी प्रतिभागियों का हौसला अफजाई किया और अनुसंधान के विभिन्न आयामों पर भी प्रकाश डाला। द्वितीय सत्र में चेयरपर्सन के रूप में डॉ.एनएन मिश्रा एवं डॉ.आनंद प्रकाश दुबे, डॉ.सुबा लाल पासवान और और डॉ. निशिकांत ने मनोविज्ञान के विभिन्न पहलुओं और अनुसंधान के आधुनिक पक्ष पर प्रकाश डाला। कुल छह सत्रों में टेक्निकल और अकादमिक सत्र को चलाया गया, जिसमें छात्र-छात्राओं के द्वारा ऑनलाइन और ऑफलाइन मोड में एक सौ बीस पत्र पढ़े गए। पूरे देश भर के विभिन्न विश्वविद्यालयों के विद्वान वक्ताओं ने ऑनलाइन मोड में भी प्रतिभागियों को संबोधित किया।शिक्षकों और शोध छात्रों के द्वारा प्रश्न भी पूछे गए। कॉन्फ्रेंस के अलग-अलग सत्रों का मंच संचालन डॉ. सुनीता कुमारी और डॉ.तूलिका ने किया। धन्यवाद ज्ञापन उप-संयोजक डॉ.आभा रानी सिन्हा और डॉ.अफरोज ने किया। इस अवसर पर उप-संयोजक प्रो.आभा रानी सिन्हा, डॉ.विकास कुमार समेत ऑर्गेनाइजिंग कमेटी और एडवाइजरी कमेटी के सदस्य सहित बड़ी संख्या में मनोविज्ञान विभाग के स्नातकोत्तर के छात्र-छात्राएं एवं शोधार्थी ने कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लिया।